Monday, June 23, 2014

नमस्ते कहाँ से चली?

| ओ३म् |

वैदिक सिद्धांतो पर आधारित

"दो मित्रो की बातें" - पंडित सिद्ध गोपाल कविरत्न

 

नमस्ते कहाँ से चली?




कमल - मित्र, यह नमस्ते कहाँ से चली और इसका अर्थ क्या है?



विमल - सृष्टि के आदि से लेकर महाभारत पर्यन्त सब मनुष्य परस्पर में नमस्ते ही करते थे । उनके पश्चात् जब अनेक मत मतान्तर और अनेक मजहब दुनियां में फैले, तो उन सबने अलग-२ शब्द नियत किए । किसी ने 'गुड मार्निंग' 'गुड नाइट' 'गुडबाए' किसी ने 'अस्लाम अलैकूल' 'वालेकम सलाम' 'आदाब अर्ज' आदि-२ अनेक शब्द विधर्मियों और विदेशियों ने कल्पित किए। जै शिव, जै हरी, जय गोविन्द, जय राधेश्याम, जै रामजी की, जय कृष्णजी की,  प्रणाम, जुहार आदि अनेक प्रयोग जारी किये | महाभारत के पहिले भूमण्डल पर आर्य लोगो का अखण्ड राज्य था लोग वैदिक धर्मी थे। परस्पर में नमस्ते ही किया करते थे । अब ऋषि दयानन्द की कृपा से लोग प्राचीन वैदिक सिद्धान्त को पुन: समझने लग गए है और परस्पर में नमस्ते करने लगे हैं । तुमने जो यह पूछा है की नमस्ते का क्या अर्थ है, सो नमस्ते का अर्थ है- 'मैं तुम्हारा मान्य करता हूँ आदर करता हूँ ।'



कमल - क्या वेदो में नमस्ते करना लिखा है? और जै रामजी की, जै श्री कृष्ण की करने में नुकसान ही क्या है?



विमल - वेदो में ही क्या बाल्मीकि रामायण, महामारत्त, उपनिषद, गीता आदि समस्त ग्रन्धों में नमस्ते ही लिखा हुआ मिलता है । कहीं भी जै रामजी की, जै कृष्ण जी की, जय शिव की आदि-२ लिखा हुआ नहीं मिलता । राम और कृष्ण स्वयं नमस्ते करते थे, क्योकि वे सब वैदिक धर्मी थे । मित्र! अगर तुमसे कोई यह पूछे कि राम और कृष्ण के उत्पन्न होने के पहिले लोग क्या करते थे तो इसका उत्तर क्या दे सकते हो? राम को उत्पन्न हुए लगभग १० लाख वर्ष हुए और कृष्ण को उत्पन्न हुए लगभग ५ हजार वर्ष हुए। सृष्टि तो इससे पहले की है । सृष्टि को उत्पन्न हुए तो करीब-२ अरब वर्ष हुए है । मैं तुमसे कह चुका हूँ यह सब साम्प्रदायिक लोगों की कल्पनायें हैं । तुम्हारा यह कहना कि जै रामजी की, जै कृष्ण जी की कहने में नुकसान क्या है? नुकसान एक नहीं अनेक है । प्रथम तो लोगों में साम्प्रदायिक भावना जागृत होती है। दूसरे इन प्रयोगों में परस्पर के सम्मान की कोई भावना नहीं । मानव समाज में तो कोई उम्र  में किसी से बड़ा है, कोई उम्र में छोटा है और कोई उम्र में बराबर । जब परस्पर में एक दूसरे से मिलना हो तो एक दूसरे के प्रति  आदर और सम्मान का भाव प्रकट करना मनुष्यता और सभ्यता का चिन्ह है । ऐसा न करके जै रामजी की, जय कृष्ण जी की, या जय शिव की करना शोभास्पद प्रतीत नहीं होता । फर्ज करो तुम्हें अपनी नानी, मामी या बुआ, फूफा के दर्शन हुए और उस समय उन सबसे तुमने 'जयरामजी की’ या 'जय कृष्णजी की’ कहा, तो ऐसा कहने में तुमने उनके सम्मान में क्या शब्द कहे? क्यों जय रामजी की बोलने में राम की जय और जय श्रीकृष्ण जी बोलने में कृष्ण के जय हुई । उनके आदर और सम्मान में तो कुछ नहीं हुआ । 'नमस्ते' कहने से यह बात निकली "मैं तुम्हारा मान करता हूँ|" मैं तुम्हारा आदर करता हूँ। आदर हर एक का करना चाहिए छोटों का छोटो जैसा, बड़ो का बड़ा जैसा । बच्चे का भी आदर है, और बड़े का भी आदर है, माता-पिता का भी आदर है, पुत्र-पुत्री का भी आदर है ।



कमल - राम की जय और कृष्ण की जय बोलने में राम और कृष्ण का नाम जुबान पर आता है?



विमल - नाम तो आता है पर क्या ये जरुरी है कि एक दूसरे के सम्मान या अदब के समय भी जय रामजी की और जयकृष्ण जी  की कहा जाये? क्या हर समय हर एक शब्द का बोलना उचित होता है? समय पर राम की और कृष्ण की जय बोलना भी अच्छा प्रतीत हो सकता है| जहाँ राम और कृष्ण का चरित्र वर्णन किया जा रहा हो, वहाँ कंस और रावण के मुकाबले पर राम-कृष्ण की जय बोलना अत्यन्त सुन्दर और शोभायमान प्रतीत होता है ।


कमल - क्या अच्छे शब्द हर समय नहीं बोले जा सकते हैं?


विमल - चाहे जितने ही सुन्दर शब्द हों, वे समय पर ही अच्छे मालूम देते हैं । देखो! 'राम नाम सत्य है' कितना सुन्दर वाक्य है। परन्तु हर समय अच्छा मालूम नहीं देता । यदि हर समय मालूम दे तो जरा विवाह के अवसर पर इसे बोलकर देखो फिर पता चले कि यह वाक्य कितना भयंकर है । इस वाक्य के बोलने में कितनी बुराइयों और गालियों पल्ले पड़ती हैं, जरा आजमा कर कभी देखो तो सही ।



कमल - क्या प्रत्येक को नमस्ते करना चाहिए? बेटा बाप को नमस्ते करे तो ठीक भी है, परन्तु बाप बेटे को नमस्ते करे, माँ बेटी को नमस्ते करे, छोटे बड़े को, बड़ा छोटे को, नीच ऊँच को, ऊँच नीच को, भला यह क्या बात हुई?



विमल - अच्छा यह बताओ, कि एक मनुष्य को अपनी माता से प्रेम करना चाहिए या नहीं?



कमल - हाँ, करना चाहिए ।



विमल - अपने भाई से भी प्रेम करना चाहिए या नहीं?



कमल - हाँ करना चाहिए ।



विमल - अपनी पुत्री से भी प्रेम करना चाहिए या नहीं?



कमल - हाँ, करना चाहिए!



विमल - अपनी पत्नी से भी प्रेम करना चाहिए या नहीं?



कमल - हाँ करना चाहिए ।



विमल - अब मैं पूछता हूँ सबसे ही प्रेम करना चाहिए, यह क्या बात हुई? माता से भी प्रेम, बहिन से भी प्रेम. पुत्री से भी प्रेम, पति से भी प्रेम, पिता, पुत्र और भाई से भी प्रेम । सबसे प्रेम ही प्रेम! सब के लिए एक ही शब्द । भला यह कहाँ की सभ्यता है की प्रत्येक से प्रेम करें?

कमल - पति, पुत्र, माँ, बहिन, बेटी आदि से प्रेम करने में भावनायें तो अलग-२ हैं?



विमल - इसी प्रकार नमस्ते करने की भावनायें अलग-२ हैं । जैसे माता-पिता से प्रेम करते हैं तो श्रद्धा प्रकट करते है, भाई-बहन से प्रेम करते हैं तो स्नेह प्रकट करते हैं, पति से प्रेम करते समय 'प्रणय' की भावना प्रकट करते हैं, वह भगवान से प्रेम करते हैं तो भक्ति प्रकट करते हैं । इसी प्रकार माता-पिता से नमस्ते करते हैं तो आदर प्रकट करते हैं । पुत्र-पुत्री से नमस्ते करते हैं तो आशीष या आशीर्वाद देते है । बराबर वालों से नमस्ते करते हैं तो प्रेम प्रकट करते है । बड़ो का आदर, बराबर वालों से प्रेम, छोटों पर दया यह सारी भावनायें 'नमस्ते' शब्द में मौजूद हैं । परन्तु इन समस्त भावनाओं की मन्शा एक ही हैं- प्रत्येक का आदर; प्रत्येक का सत्कार जैसे श्रद्धा, स्नेह, प्रणय आदि शब्द प्रेम के ही दूसरे रुप हैं, इसी प्रकार आदर, आशीर्वाद प्रेम आदि भी नमस्ते के दूसरे रुप हैं।



कमल - मित्र, आपने यह शंका तो निवारण कर दी। अब यह बतलाइये की मनुष्य को माँस खाना चाहिए या नहीं?



विमल - इस विषय पर कल विवेचन करेंगे अब तो देर हो रही है |


| ओ३म् |

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