Tuesday, April 30, 2013

BHAJAN : ULAJH MAT DILBAHARON ME

BHAJAN : ULAJH MAT DILBAHARON ME


उलझ मत दिल बहारों में,
बहारों का भरोसा क्या ।

सहारे टूट जाते हैं,
सहारों का भरोसा क्या ॥

तमन्नाऐं जो तेरी हैं,
फुहारें हैं ये सावन की ।

फुहारें सूख जाती है,
फुहारों का भरोसा क्या ॥

तू इन फूले गुब्बारों पर,
अरे दिल क्यों फिदा होता ।

गुब्बारे फूट जाते हैं,
गुब्बारों का भरोसा क्या ॥

तू सम्बल नाम का लेकर,
किनारों से किनारा कर ।

किनारे टूट जाते हैं,
किनारों का भरोसा क्या ॥

अगर विश्वास करना है,
तो कर अपने ही दाता पर ।

धनी अभिमानी लोभी,
दुनियादारी का भरोसा क्या ॥

परम् प्रभु की शरण लेकर,
(माया) विकारों से सजग रहना ।

कहां कब मन बिगड जाये,
माया-विकारों का भरोसा क्या ॥

तू अपनी अक्लमंदी पर,
विचारों पर न इतराना ।

जो लहरों की तरह चंचल,
विचारों का भरोसा क्या ॥
 

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