Thursday, December 8, 2011

होता सब कुछ‌ भगवान स्वयं, तो भगवान कहाँ आवश्यक था...

मानव ही होता ज्ञानवान, तो वेद कहाँ आवश्यक था
होता सब कुछ‌ भगवान स्वयं, तो भगवान कहाँ आवश्यक था

नाम नहीं होता उसका, बस‌ सब कुछ मैं मैं मैं होता
न भेद कोई दिखता हमको हर गड्ढा भी समतल लगता

सत्य और असत्य का फिर बोध किसी को क्यों होता
होता सब कुछ‌ भगवान स्वयं, तो भगवान आवश्यक क्यों होता

यह अन्तर ज्ञान अज्ञान का है, विद्या और अविद्या का
श्रद्धा और विश्‍वास का, संग ज्ञान के और बिन ज्ञान का है

समर्पण जब बिन यथार्थ के, अयथार्थ में हो जाता है
तो न्याय नहीं मिलता जग में, सब कुछ अनुचित हो जाता है

तो ध्यान धरो लक्ष्मण रेखा, हर बात में तुम न पार करो
वरना सुख दुख में बदलेगा, चाहे तुम कितना यत्‍न‌ करो

यह ज्ञान ही है असली सब सुख, बिन यत्न नहीं जो मिलता है
जब तक हम धारण करें नहीं, तप, त्याग, तपस्या, यम नियम

पूजा तुम लाख करो रब की, रब कोई फल न देता है
जब तक न अनुचित को तजकर, तुम राह न सीधी पर आओ

क्या न्याय करे मानव लेकिन, अन्यायी को प्रभु कृपा मिले
क्योंकि प्रभु तो है शक्तिमान, जो चाहे वैसा ही वह करे

जो सृष्टी को बांधे नियमों में, क्या वो ही नियमों को तोड़ेगा
इतना तो तनिक विचार करो, न अपना बंटाधार करो ||

By: Shri AnandBakshi Ji

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